Thursday, March 29, 2012

बेटियां,

बेटी है तो कल है"
बेटी है तो कल है .
बेटी गंगा जैसी पावन.बेटी गंगा जल है .
बेटी सुख की नदिया. बेटी निश्चल अविरल है ..बेटी है तो कल है .
बेटी से होता रोशन सरे जग का आँगन है,
बेटी आँगन की तुलसी,बेटी नयनजल है ..
बेटी है तो कल है .
बेटी बिन न होता कोई कम सफल है ...बेटी है तो कल है..
बेटी से है होली. बेटी से है दिवाली .
बेटी से रक्षाबंधन जैसा पर्व है ...बेटी है तो कल ...
बेटी चांदनी है बेटी रोशनी है .
बेटी न रुकने वाली ऐसी एक लहर है ..बेटी है तो कल है .
देती साथ अपनों का .उठाती बोझ अपनों का हश हश कर ..करती ये रोशन अपने बाबुल का घर है .
बेटी है तो कल है ..
बेटी को कोख में मत मरो उसे भी जीने का हक़ है..


बेटियां,

तो बहु कहाँ से लाओगे??????

नन्ही सी एक कली हूँ मैं
कल मैं भी तो इक फूल बनूँगी
महका दूंगी दो घर आँगन
खिलकर जब मैं यूँ निखरुंगी

ना कुचलो अपने कदमों से
यूँ मुझको इक फल की चाहत में
फल कहाँ कभी बागबां का हुआ है
गिरता अक्सर गैरों की छत पे

उम्र की ढलती शाम में जब
ना होगा साथ कोई साया
याद आयेगा ये अंश तुम्हारा
जिसको तुमने खुद ही है बुझाया

क्या इन फलों से ही है माली
तेरी इस बगिया की पहचान
गुल भी तो बढ़ाते है खिलकर
तेरी इस गुलिस्तां की शान

बोलो फूल ही ना होंगे तो
तुम फल कहाँ से पाओगे
बेटी जो ना होगी किसी की
तो बहु कहाँ से लाओगे?

तो बहु कहाँ से लाओगे??????



बेटियां

ऐसी होती हैं बेटियां

मिट्टी की खुशबू-सी होती हैं बेटियां,
घर की राज़दार होती हैं बेटियां,

बचपन हैं बेटियां, जवानी हैं बेटियां,
सत्यम्-शिवम् सुंदरम्-सी होती हैं बेटियां,

सूरज-सी खिलखिलाती होती हैं बेटियां,
चंदा की मुस्कुराहट-सी होती हैं बेटियां,

दुर्गा-सी बेटियां, कभी गंगा-सी बेटियां,
हर महिषासुर का वध करने को तैयार बेटियां,

मायके से ससुराल का सफर तय करती हैं बेटियां,
कल्पना में बेटियां, कभी वास्तविकता में बेटियां,

फिर क्यों जला देते हैं ससुराल में बेटियां?
फिर क्यों ना बांटे खुशियां जब होती हैं बेटियां?

एक नहीं दो वंश चलाती हैं बेटियां,
फिर गर्भ में क्यों मार दी जाती हैं बेटियां?


बेटियाँ "

बेटियाँ

प्यार का मीठा एहसास हैं बेटियाँ
घर के ऑंगन का विश्वास हैं बेटियाँ

वक़्त भी थामकर जिनका ऑंचल चले
ढलते जीवन की हर श्वास हैं बेटियाँ

जिनकी झोली है खाली वही जानते
पतझरों में भी मधुमास हैं बेटियाँ

रेत-सी ज़िन्दगी में दिलों को छुए
मखमली नर्म-सी घास हैं बेटियाँ

तुम न समझो इन्हें दर्द का फलसफा
कृष्ण-राधा का महारास हैं बेटियाँ

उनकी पलकों के ऑंचल में ख़ुशियाँ बहुत
जिनके दिल के बहुत पास हैं बेटियाँ

गोद खेली, वो नाज़ों पली, फिर चली
राम-सीता का वनवास हैं बेटियाँ

जब विदा हो गई, हर नज़र कह गई
ज़िन्दगी भर की इक प्यास हैं बेटियाँ


बेटियाँ "

बेटियाँ "

सुबह की सुनहली धूप _सी ये मासूम बेटियाँ,

जब घर में जन्म लेती है,

कहीं ख़ुशी तो कहीं मातम होता है,

कहीं तो कोमल कली_सी पाली जाती हैं,

ओर कहीं काली रात _सी धुत्कार दी जाती है,

थोड़ा सा प्यार पा कर खिल जाती हैं,

जहाँ भी जाएँ दूध में पानी_ सी मिल जाती हैं,

सुबह की सुनहली धूप_ सी मासूम

ये बेटियाँ

स्रिस्टी को जन्म देती हैं,

अपने गर्भ में पालती हैं,

ओर गर्भ में ही मार दी जाती हैं,

ये बेटियाँ

जग स्तंभ कहलाती हैं

फिर भी सहारे को तरसती हैं,

सुबह की सुनहरी धूप सी मासूमयाँ

ये बेटियाँ "

बेटियाँ "

बेटी

ह्रदय का अंग होती

उसकी पीड़ा सही

ना जाती

व्यथा उसकी

निरंतर रुलाती

ह्रदय को तडपाती

एक पल भी चैन नहीं

लेने देती

मन सदा

उसकी कुशल क्षेम चाहता

उसके प्यार में डूबा

रहता

बेटी का जन्म

पिता का सबसे

महत्वपूर्ण सृजन होता

प्रेम निश्छल,निस्वार्थ होता

उसकी खुशी ह्रदय की

सबसे बड़ी खुशी होती

बेटी ,पिता के जीवन में

खिलती धूप सी होती

उसकी कमी

अन्धकार से कम

ना होती

बेटी पिता को

परमात्मा की भेंट होती

उसके नाम से ही आँखें

नम होती


बेटियाँ "

बेटी है तो कल है"

बेटी है तो कल है .

बेटी गंगा जैसी पावन.बेटी गंगा जल है .

बेटी सुख की नदिया. बेटी निश्चल अविरल है ..बेटी है तो कल है .

बेटी से होता रोशन सरे जग का आँगन है,

बेटी आँगन की तुलसी,बेटी नयनजल है ..

बेटी है तो कल है .

बिन न होता कोई कम सफल है ...बेटी है तो कल है..

बेटी से है होली. बेटी से है दिवाली .

बेटी से रक्षाबंधन जैसा पर्व है ...बेटी है तो कल ...

बेटी चांदनी है बेटी रोशनी है .

बेटी न रुकने वाली ऐसी एक लहर है ..बेटी है तो कल है .

देती साथ अपनों का .उठाती बोझ अपनों का हश हश कर ..करती ये रोशन अपने बाबुल का घर है .

बेटी है तो कल है ..

बेटी को कोख में मत मरो उसे भी जीने का हक़ है.
.

बेटियाँ "

बेटी .......प्यारी सी धुन

न जाने क्यों आज भी

हमारे समाज में

हर घर परिवार में

पुत्र की चाहत का

इज़हार किया जाता है।

गर बेटी हो जाए

तो माँ का तिरस्कार किया जाता है।

कितनी मजबूर होती होगी

वो माँ

जो अपने गर्भ में

पलने वाले बच्चे को

मात्र इस लिए काल के

क्रूर हाथों के हवाले कर दे

कि वो बेटी है।

नष्ट कर देते हैं

बेटी कि संरचना को

भूल जाते हैं सच्चाई कि

यही बेटियाँ सृष्टि रचती हैं।

शायद ऐसे लोग बेटी की

अहमियत नही जानते हैं

बेटा लाख लायक हो

पर बेटियाँ

मन में बसती हैं

उनके रहने से

न जाने कितनी

कल्पनाएँ रचती हैं।

बेटियाँ माँ का

ह्रदय होती हैं , सुकून होती हैं

उसके जीवन के गीतों की

प्यारी सी धुन होती हैं.

बेटियाँ

बेटियाँ


प्यार का मीठा एहसास हैं बेटियाँ

घर के ऑंगन का विश्वास हैं बेटियाँ

वक़्त भी थामकर जिनका ऑंचल चले

ढलते जीवन की हर श्वास हैं बेटियाँ

जिनकी झोली है खाली वही जानते

पतझरों में भी मधुमास हैं बेटियाँ

रेत-सी ज़िन्दगी में दिलों को छुए

मखमली नर्म-सी घास हैं बेटियाँ

तुम न समझो इन्हें दर्द का फलसफा

कृष्ण- -राधा का महारास हैं बेटियाँ

उनकी पलकों के ऑंचल में ख़ुशियाँ बहुत

जिनके दिल के बहुत पास हैं बेटियाँ

गोद खेली, वो नाज़ों पली, फिर चली

राम-सीता का वनवास हैं बेटियाँ

जब विदा हो गई, हर नज़र कह गई

ज़िन्दगी भर की इक प्यास हैं बेटियाँ

बेटियाँ "

बेटियाँ "


सुबह की सुनहली धूप _सी ये मासूम बेटियाँ,

जब घर में जन्म लेती है,

कहीं ख़ुशी तो कहीं मातम होता है,

कहीं तो कोमल कली_सी पाली जाती हैं,

ओर कहीं काली रात _सी धुत्कार दी जाती है,

थोड़ा सा प्यार पा कर खिल जाती हैं,

जहाँ भी जाएँ दूध में पानी_ सी मिल जाती हैं,

सुबह की सुनहली धूप_ सी मासूम

ये बेटियाँ

स्रिस्टी को जन्म देती हैं,

अपने गर्भ में पालती हैं,

ओर गर्भ में ही मार दी जाती हैं,

ये बेटियाँ

जग स्तंभ कहलाती हैं

फिर भी सहारे को तरसती हैं,

सुबह की सुनहरी धूप सी मासूम

ये बेटियाँ

बेटियाँ "

बेटियाँ "

देवताओ को घर में बसा लीजिये।

भारती मान को भी बचा लीजिये।

ऐ पुरूष चाहते हो कि कल्याण हो-

बेटियाँ देवियाँ है, दुवा लीजिये।।

माँ,बहन ,संगिनी,मीत है बेटियाँ

दिव्यती ,धारती, प्रीत है बेटियाँ।

देव अराध्य की वंदनाएं है ये-

है ऋचा,मन्त्र है ,गीत है बेटियाँ॥

जग की आशक्ति का द्वार है बेटियाँ।

मानवी गति का विस्तार है बेटियाँ।

जग कलुष नासती ,मुक्ति का सार है-

शक्ति है शान्ति है,प्यार है बेटियाँ

बेटियाँ

सूरज से हैं तेज बेटियाँ,
चाँद की शीतल छाँव बेटियाँ,
झिलमिल तारों सी होती हैं,
दुनिया को सौगात बेटियाँ।

कोयल की संगीत बेटियाँ,
पायल की झंकार बेटियाँ,
सात सुरों की सरगम जैसी,
वीणा की वरदान बेटियाँ।

घर की हैं मुस्कान बेटियाँ,
लक्ष्मी का हैं मान बेटियाँ,
माँ बापू और कुनबे भर की,
सचमुच होती जान बेटियाँ।

दुर्गा इंदिरा लक्ष्मी बाई,
जैसी बनें महान बेटियाँ,
कर्म क्षेत्र में बढ़ने को हैं,
आज सभी तैयार बेटियाँ।

सूरज सी हैं तेज बेटियाँ,
चाँद की शीतल छांव बेटियाँ

बेटियाँ "

बेटियाँ "

शायद पल भर में ही
सयानी हो जाती हैं
बेटियाँ,
घर के अंदर से
दहलीज़ तक कब
आज जाती हैं बेटियाँ

कभी कमसिन, कभी
लक्ष्मी-सी दिखती हैं
बेटियाँ।
पर हर घर की
तकदीर, इक सुंदर
तस्वीर होती हैं
बेटियाँ।

हृदय में लिए उफान,
कई प्रश्न, अनजाने
घर चल देती हैं बेटियाँ,
घर की, ईंट-ईंट पर,
दरवाज़ों की चौखट पर
सदैव दस्तक देती हैं
बेटियाँ।

पर अफ़सोस क्यों सदैव
हम संग रहती नहीं
ये बेटियाँ।